Sunday, 13 March 2022

उत्तर प्रदेश में भगवा योग

 उत्तर प्रदेश भारतीय राजनीति का सिंहभाग है अर्थात् यूपी इज़ लॉयन्स शेयर ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स! 


देश‌ की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य राजनीति का माहिर खिलाड़ी है। कहते हैं दिल्ली का रास्ता यूपी के दिल से होकर जाता है। यहाँ से नेताओं की, राजनीतिक दलों की, सत्ताओं की दिशा तय होती है। कोई भी दल उत्तर प्रदेश विजय किए बिना दिल्ली का सपना पूरा नहीं कर सकता। और हमारे पूर्वांचल को विजय करना मतलब हमारे दिलों को जीतना है।


साल दो हज़ार चौदह जिसने इक्कीसवीं सदी का महापरिवर्तन देखा, वह उत्तर प्रदेश के आशीर्वाद के बिना मुमकिन ही नहीं था। वाराणसी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मस्तक पर विजय तिलक लगाया और देश ने भारतीय जनता दल को दिल्ली सौंप दी। उत्तर प्रदेश ने दो हज़ार उन्नीस में इतिहास दोहराया प्रधानमंत्री वाराणसी से पुनः सांसद बने और केन्द्र में फ़िर भाजपा की सरकार बनी। ये उत्तर प्रदेश का मिजाज़ है। 


सत्ता के सर्वोच्च पद पर पहुँचने के लिए नेताओं को गलियारा देने वाले उत्तर प्रदेश ने उपेक्षा, हिकारत, कुशासन, गरीबी, मति मंदिता, शोष और भ्रष्टाचार का एक अंध युग देखा है। वह युग जिसमें अपराधियों ने आम जनता का जीना मुहाल कर रखा था। वह युग जिसमें माफियाओं की चरण वंदना होती थी। वह युग जिसकी पहचान केवल तुष्टीकरण ही रह गया था। वह युग जो बहुसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए जाना जाता है। वह युग जिसने ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया यादव और दलितों में हद दर्जे का भेदभाव किया। वह युग जिसमें विकास केवल परिवारों तक सीमित रह गया था।‌ वह युग जिसने सत्ता को निजी भोग की वस्तु समझा। यूपी ने राजनेताओं को बहुत कुछ दिया लेकिन राजनेताओं ने यूपी को खंख कर दिया।


दो हज़ार सत्रह में अखिलेश यादव का कार्यकाल पूरा हुआ। उत्तर प्रदेश ने अपने मिज़ाज के हिसाब से फ़िर बदलाव किया। चुनाव कुशासन, गुंडाराज और विकास की जगह विनाश के मुद्दों पर लड़ा गया। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए किसी चेहरे को पोस्टर ब्याव‌ नहीं बनाया। वह चुनाव केवल और केवल नरेंद्र मोदी के कामों पर लड़ा गया। उत्तर प्रदेश ने बिना मुख्यमंत्री जाने भाजपा को आशातीत मेजारिटी देते हुए तीन‌ सौ बारह सीटों की सौगात दी। वह माइल्ड स्टोन था, जो उत्तर प्रदेश ने अपने लिए गढ़ा। मुख्यमंत्री की घोषणा करने में पार्टी को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। और अचानक से सारे राजनीतिक पंडितों को चौंकाते हुए भाजपा कार्यकारिणी ने गोरखपुर के सांसद व गोरक्ष पीठ के महन्त योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी। 


भारतीय जनता दल का एक भगवाधारी हिन्दू, संन्यासी को मुख्यमंत्री बनाना हर खास आम के लिए शॉक था।‌ एक तो ऐसा राज्य जहाँ हिन्दू-मुसलमान को लेकर इतना बड़ा विवाद हो, जहाँ धर्म की राजनीति ही राजनीति का मूल हो, जहाँ हिन्दुओं की तरफदारी मतलब राजनीतिक सफ़र का अंत माना जाता हो, वहाँ एक संन्यासी को मुख्यमंत्री बनाना पहली नज़र में आत्माघाती लग रहा था। लेकिन भारतीय जनता दल की दृष्टि बड़े लक्ष्य पर थी। योगी आदित्यनाथ केवल मुख्यमंत्री नहीं बनाए गए थे, बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए एक मजबूत बैकअप प्लॉन की तरह लाए गए थे। 


योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के साथ तमाम प्रश्न उठे कि ये भजन करने वाला संन्यासी उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का काँटो भरा सिंहासन सम्भाल पाएगा? इससे प्रशासन सम्भलेगा?


इस बात पर मुझे सुग्रीव व श्रीराम का संवाद स्मरण हो आता है। जिसमें बालि वध से दु:खी सुग्रीव को श्रीराम सांत्वना दें रहे हैं। तब सुग्रीव कहते हैं, "मैं राजा नहीं बनना चाहता, मैं संन्यासी बनना चाहता हूँ।"


श्रीराम सहज भाव से कहते हैं, " संन्यासी से अच्छा राजा कौन हो सकता है मित्र!"


युगों पूर्व इस वृतांत को हम अपनी आँखों से सच होते देख रहे हैं। जिसके पास घर-परिवार के नाम पर कोई है नहीं, वह धन का भी लोभ नहीं करता। भारत के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसका मूर्त उदाहरण हैं। यह हिन्दू संन्यासियों के राष्ट्र के लिए किए जाने वाले कार्यों का महायुग है। हम सभी भाग्यशाली हैं जो अपनी आँखों से एक इतिहास बनता देख रहे हैं, यह समय दोबारा नहीं आएगा।


उत्तर प्रदेश के बारे में तो हर ओर यही ख़बर रहती है कि, एक संन्यासी ने अस्त-व्यस्त प्रदेश को मस्त प्रदेश बना दिया। बात चाहे प्रशासन की हो, चाहे गरीबों के कल्याण की। चाहे सबका कल्याण हो या सबका विकास। योगी आदित्यनाथ ने भेदभाव नहीं किया। और वे निरंतर हिन्दुओं के उन हितों के प्रति सजग रहें जो बेवजह ही अन्य समुदायों की खुशियों के भेंट चढ़ जाया करते थे। और अन्य धर्मों के हितों का भी ध्यान रखा।


मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी जी ने सबसे पहले गुंडागर्दी पर करारा प्रहार किया। बाहुबली मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जिनके रास्ते में आने का कोई साहस नहीं कर सकता था। उन‌ गुंडों की सैकड़ों करोड़ की सम्पत्तियाँ योगी जी ने सील की। उनके अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलवाकर ये बता दिया कि अब‌ उत्तर प्रदेश की सरकार इनकी कठपुतली नहीं है। अपराधियों पर गैंगस्टर और रासुका लगाकर अपराध पर रोक लगाई। 


कोरोनाकाल में सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में नि:शुल्क अन्न वितरण हुआ। कोरोना की दुश्वारियों से निपटने के साथ ही साथ घर में बेकाम बैठी गरीब जनता का पेट भरना भी एक चुनौती थी, जिसे योगी आदित्यनाथ ने चुनौती की तरह ही लिया और पूरा भी किया। मैं उत्तर प्रदेश से हूँ इसलिए यह ज्ञात है कि लोगों ने मुफ्त के अनाज को बेच बेचकर काफ़ी पैसे जमा किए हैं।(इसपर कोई वाद न खड़ा करें, यह तथ्य है) यूँ तो सरकारें बहुत कुछ बाँटती रहती हैं लेकिन वह ज़रूरतमंदों तक पहुँचे इसकी शुचिता किसी की जिम्मेदारी नहीं रहती। लेकिन नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ने मिलकर उन छिद्रों को लगभग पाट दिया है जो गरीबों का हिस्सा सोख जाते थे। अब हर हकदार तक उसके हिस्से का सामान पहुंच रहा है।


जातिगत राजनीति भारतीय जनता दल के डीएनए में यों भी नहीं है।‌ लेकिन बहाव‌ से अछूता कोई रह नहीं पाता। किन्तु जातिगत राजनीति के कोर उत्तर प्रदेश में कास्ट पॉलिटिक्स को ख़त्म करने का श्रेय योगी आदित्यनाथ को जाता है। अपने पाँच साल के कार्यकाल में उन्होंने जातियों का जाल तोड़ दिया। उन्होंने "नेचर ऑफ पॉलिटिक्स" बदला है। भारत में नरेंद्र मोदी के राजनीति में प्रवेश के बाद से ही जातीय राजनीति के पंजे ढ़ीले पड़ने लगे थे लेकिन उत्तर प्रदेश से लोगों को जाति के आधार पर दलों के मोहपाश से निकलाकर विकास की राजनीति की ओर मोड़ना दुष्कर था। जिसे अपने अलहदे तरीके से योगी आदित्यनाथ ने सम्भव कर दिखाया है। 


दो हज़ार बाईस के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के परिणाम ने जाति,धर्म, लालच, तुष्टीकरण की राजनीति को गहरे दफन कर दिया है। यह परिणाम इशारा कर रहे हैं कि जब तक जनता को विकास विकल्प नहीं मिलता, वह तभी तक अंधेरे में तीर चलाती है। 


देश की सबसे बड़ी दलित राजनेता, चार बार की सीएम रहीं मायावती जी का हश्र देखकर अचरज हो जा रहा है कि आख़िर इनका कोर वोटर दलित, जो कि बिलकुल ही गरीब निरक्षर तबका है, वह इनसे छिटककर विकास की ओर चला गया। यह छिटकाव इस बार का नहीं है, यह पिछले विधानसभा चुनाव से ही हो रहा है। 


कॉग्रेस का हाल तो बिन कहे ही ठीक है।‌ अभी तक उत्तर प्रदेश में मात्र एक विजयी सीट है उसके पास। कॉग्रेस ने अपने बेस्ट विकल्प प्रियंका वाड्रा को उत्तर प्रदेश की अनिश्चित राजनीति में उतार दिया। प्रियंका के पास भाषण के लिए ठोस प्वाइंट तक नहीं थे। वे नए कलेवर में पुरानी राजनीति लेकर आई हैं। जो सिर्फ यह कहने से चलती है कि फलां बड़ा अत्याचार कर रहा है,हमको वोट दीजिए हम अच्छा करेंगे। लेकिन जनता को उनके पास कोई योजना नहीं दिखती। उत्तर प्रदेश के चुनाव ने राहुल गांधी के बाद प्रियंका वाड्रा को भी कॉग्रेस के लिए योग्य साबित कर दिया।‌ कॉग्रेस का आत्मघाती प्रयास लगातार जारी है। क्योंकि यह दल परिवार से बाहर झांकना ही नहीं चाहता।


समाजवादी पार्टी ने पिछले चुनाव से काफ़ी बेहतर किया है। लेकिन इस बेहतर का काफी श्रेय कॉग्रेस और बसपा की निष्क्रियता को जाता है। जो अल्पसंख्यक वोट कॉग्रेस को मिलता वह सपा को ट्रांसफर हुआ।‌ पारिवारिक टूट-फूट के बाद भी सपा के जीत के अंक बढ़े हैं। लेकिन उसकी पारिवारिक और जाति और समुदाय विशेष के प्रेम ने उसे सत्ता से काफ़ी दूर फेंक दिया। यह दूरी आगे और बहुत लम्बी हो सकती है, इसके पूरे आसार हैं। 


उत्तर प्रदेश का यह बहुप्रतीक्षित चुनाव अन्य दलों के गले की फांस इसलिए बन गया क्योंकि उनके पास भाषायी वाद के लिए भी मुद्दे नहीं थे। योगी आदित्यनाथ के विराट व्यक्तित्व के आगे यों ही सारे दलों के मुखिया बौने हो गए। एक तो सामर्थ्य की विकल्पहीनता दूजे मुद्दों की विकल्पहीनता! जब तक सत्तारूढ़ विपक्ष को ठोस मुद्दे नहीं देगा विपक्ष जनता के समक्ष कमियां क्या लेकर जाएगा। कुशासन मुद्दा बन नहीं सका। गरीब मुद्दा बन नहीं सके। विकास मुद्दा बन नहीं सका। हवा-हवाई बातों से सत्ता के किले नहीं खड़े होते।


उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ने लोकसभा के दो हज़ार चौबीस की तस्वीर काफी हद तक साफ़ कर दी है। हिन्दुओं ने एकमत होकर एक विकासशील और तुष्टीकरण की नीति से मुक्त सरकार का चयन किया है। उत्तर प्रदेश का भगवा रंग देश का मूड है। आज तक उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास ने एक मुख्यमंत्री को लगातार दो कार्यकाल कभी नहीं दिए। यह यूपी के स्वभाव के बिल्कुल उलट है, अप्रत्याशित है। तो आगे भी कुछ न कुछ अप्रत्याशित देखने को मिलने वाला ही है। 


जो राम को लाएं हैं, हम उनको लाएंगे! उत्तर प्रदेश की जनता ने अपना प्रण पूर्ण किया।


उत्तर प्रदेश के भगवा रंग में रंगने की बधाई!